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तो हम नहीं होते

नमस्कार
नमस्कार
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सभी के सपनों को पूरा करते हुए उसका अपना कोई सपना नहीं रह जाता। दूसरों के सपनों से जोड़ लेती है आंखें।
गांव में जाड़े की सुबह, जब सभी रजाई में दुबके रहते हैं, वह नहाकर आंगन की तुलसी के सामने प्राथॆना करती नजर आती है। चूल्हे पर खदबदाते भात की आवाज पर कान धरे, दूध की उबाल को संभालने का जिम्मा लिए। उठ चुके बच्चे के मुंह में टपका देती है अमृत की बूंद। शहर में बेशक वह बदली भूमिका में दिखाई देती है लेकिन वह पहले से ज्यादा चुनौतीपूणॆ है। शरीर पर चुभती नजरों के चक्रव्यूह से नहीं निकल पाती वह। बस में टकरा ही जाता है कोई। कायॆस्थल पर निकटता पाने व बढ़ाने की कोशिश में लगे लोग। कौन है वह, मरुस्थल में उद्यान सी। धूप में छाया सी। आंगन में तुलसी सी। कानों में लोरी सी, आंखों में हरियाली सी, कविता सी, गजल सी, सर्दी में  आग सी, गर्मी में जल सी। गोद में सितार सी, होठ पे बांसुरी सी। कौन है वह? गौर से देखिए, दिखाई देगी। वह दया है, क्षमा है, करुणा है, मैत्री है, विश्वास है, सृजन है,शक्ति  है आस है, उम्मीद है, उजास है विश्वास है। उसी ने हमें अपनी कोख में पाला है, सजाया है, संवारा है, दुलारा है, संभाला है। दुनिया में जो कुछ भी सुंदर है, उसी की देन है। वह हमारी जमीन है, आकाश भी। उसी से मिले हैं संस्कार मनुष्य होने व बने रहने के। वह नहीं होती तो हम नहीं होते।

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